बाणगंगा मेले की शुरूआत तात्कालीन रीवा महाराजा गुलाब सिंह ने 1895 मे कराई थी। तब से बांणगंगा मे निरंतर मेले की परांपरा चली आ रही है। मेले का उदेश्य स्नान, दान व पुण्य की मिसाल कल्चुरी कालीन एक हजार पहले बने विराट मंदिर के प्रांगण में अपनी अमिट छाप छोड़ रही है। मेले का स्वरूप भी रहट से आकाशीय झूले तक पहुंच चुका है। मेले में लोगों का मेल मिलाप और उत्साह पुरानी रीति रिवाज को समेटे हुए आदिवासियों के प्रकृति प्रेम का गवाह बना हुआ है। जब मेले की शुरुआत हुई थी तब तीन दिन तक ही मेला रहता था। जो अब 5 दिन तक भरने लगा है।